Bhagavad Gita As It Is DAY-10 (2.45-54)

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

श्लोक पहचानें - हे अर्जुन! जय अथवा पराजय की समस्त आसक्ति त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो | ऐसी समता योग कहलाती है |

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |

निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || 2.45 ||

कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 2.47 ||

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |

सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || 2.48 ||

दुरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय

बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः || 2.49 ||

2.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

2 mins • 1 pt

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वेदों में मुख्यतया प्रकृति के ____ गुणों का वर्णन हुआ है | (2.45)

2

3

4

5

3.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

भौतिक गुणों की क्रियाएँ-प्रतिक्रियाएँ: सुख-दुख या शीत-ग्रीष्म कब तक रहने वाले हैं? (2.45)

जब तक भौतिक शरीर का अस्तित्व है

जब तक आध्यात्मिक गुरु न स्वीकार कर लिया जाए

4.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

द्वैतताओं को सहन करके हानि तथा लाभ की चिन्ता से कैसे मुक्त हुआ जाय? (2.45)

कृष्ण की इच्छा पर पूर्णतया आश्रित रह कर

शून्य पर ध्यान से

नेटफ्लिक्स सब्सक्रिप्शन से

हठयोग व प्राणायाम की विधियों द्वारा

5.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

वेदों के कर्मकाण्ड विभाग में वर्णित अनुष्ठानों एवं यज्ञों का ध्येय क्या है? (2.46)

इन्द्रियतृप्ति की प्रामाणिक सुविधाएं प्रदान करना

आत्म-साक्षात्कार के क्रमिक विकास को प्रोत्साहित करना

भौतिक प्रकृति का भरपूर आनंद लेना

नारकीय जीवन से बचाकर स्वर्गिक सुख उपलब्ध कराना

6.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

भगवान् के पवित्र नाम का जप व कीर्तन करने वाले की श्रेष्ठता का क्या प्रमाण है? (2.46)

श्रीमद्भागवत (3.33.7) - अहो बात श्र्वपचोऽतो गरीयान् - भगवन्नाम जपने वाला भले ही चाण्डाल जैसे निम्न परिवार में क्यों न हुआ हो, किन्तु वह सर्वोच्च पद पर स्थित है

भगवान् चैतन्य ने प्रकाशानंद सरस्वती को बताया - वेदान्त दर्शन के परम उद्देश्य की पूर्ति भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन करने से हो जाती है

7.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

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तीन प्रकार के कर्मों को उनके ठीक अर्थ के अनुसार चुनें | (2.47)

कर्म = प्रकृति के गुणों के रूप में प्राप्त आदेश, स्वधर्म

विकर्म = अपने कर्मों को न करना

अकर्म = अधिकारी की सम्मति के बिना किये गये कर्म

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