Bhagavad Gita As It Is DAY-13 (3.3-12)

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

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भगवान् श्रीकृष्ण ने आत्मसाक्षात्कार की इन दो योगपद्धतियों - सांख्ययोग (ज्ञानयोग) और कर्मयोग (बुद्धियोग) - का वर्णन इससे पहले किस श्लोक में किया है? (3.3)

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।

न चैव नभविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥ 2.12 ॥

एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श‍ृणु ।

बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥ 2.39 ॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ 2.47 ॥

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।

वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ 2.61 ॥

2.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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सांख्ययोग (ज्ञानयोग) पद्धति क्या है? (3.3)

आत्मा तथा पदार्थ की प्रकृति का वैश्लेषिक अध्ययन - उन लोगों के लिए, जो व्यावहारिक ज्ञान तथा दर्शन द्वारा वस्तुओं का चिन्तन एवं मनन करना चाहते हैं (दर्शन)

कृष्णभावनामृत के सिद्धान्तों पर चलते व कार्य करते हुए मनुष्य कर्म के बन्धनों से छूट सकता है, यह पूर्णतया परब्रह्म (विशेषतया कृष्ण) पर आश्रित है और ऐसे समस्त इन्द्रियों को सरलता से वश में किया जा सकता है (धर्म)

3.

MULTIPLE SELECT QUESTION

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आत्मसाक्षात्कार की दोनों योगपद्धतियों-धर्म व दर्शन के रूप में- के विषय में क्या सही है? (3.3)

दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं

दर्शनविहीन धर्म मात्र भावुकता या कभी-कभी धर्मान्धता है और धर्मविहीन दर्शन मानसिक ऊहापोह है

सम्पूर्ण पद्धति का उद्देश्य परमात्मा के सम्बन्ध में अपनी वास्तविक स्थिति को समझ लेना है

4.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

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भगवान् द्वारा बतायी गई दोनों पद्धतियों में से कृष्णभावनामृत का मार्ग श्रेष्ठ क्यों है? (3.3)

इसमें दार्शनिक पद्धति द्वारा इन्द्रियों को शुद्ध नहीं करना होता

कृष्णभावनामृत प्रत्यक्ष पद्धति है

दार्शनिक चिन्तन अप्रत्यक्ष पद्धति है

कृष्णभावनामृत स्वयं ही शुद्ध करने वाली प्रक्रिया है

भक्ति की प्रत्यक्ष विधि सरल तथा दिव्य होती है

5.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

कौन से श्लोक में कहा गया है कि यज्ञ में अर्पित किये बिना भोगने वाला निश्चित रूप से चोर है?

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् |

इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते || 3.6 ||

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः |

शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः || 3.8 ||

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः |

तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङगः समाचर || 3.9 ||

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः |

तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङक्ते स्तेन एव सः || 3.12 ||

6.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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इनमें से क्या सही है? (3.4)

कर्मविमुख होकर व्यक्ति कर्मफल से छुटकारा पा सकता है

केवल संन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है

शुद्धि के बिना भी संन्यास ग्रहण करने से सफलता मिलती है

नियत कर्मों को न करके भगवान् की दिव्य सेवा को वे स्वीकार कर लेते हैं

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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सदैव सक्रिय रहने का स्वभाव किसका है? (3.5)

देहधारी जीवन

आत्मा

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