पंडित राम प्रसाद बिस्मिल उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने अपने कार्यों से अंग्रेज़ी हुकूमत को हिला दिया था। जब राम प्रसाद आर्य समाज के संपर्क में आए, इनके जीवन में क्रांति आ गई. इनमें बुराइयों का सामना करने का साहस जाग उठा। उन दिनों स्वतंत्रता आंदोलन जोर पर था। राम प्रसाद को पता चला कि क्रांतिकारी युवक देश में सजग तथा देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने को तैयार हैं। बिस्मिल क्रांतिकारी संगठन के सदस्य बन गए। इन्होंने एक पुस्तक भी लिखी-'अमरीका को स्वतंत्रता कैसे मिली?' इनकी 'स्वदेश-रंग' नामक पुस्तक बहुत प्रसिद्ध है। आंदोलन में धन की कमी एक बहुत बड़ी समस्या थी। धन जुटाने के लिए इन्होंने किसी दीन-हीन को नहीं सताया, बल्कि अंग्रेजों का सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई। इन्होंने 9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन पर धन लूटकर स्वाधीनता संग्राम में लगा दिया। इसके लिए इनपर मुकदमा चलाया गया इन्हें फाँसी की सजा दी गई । पंडित बिस्मिल ने 26-27 वर्ष की आयु में वह कार्य कर दिखाया, जो लंबी आयु जीने वाले भी नहीं कर पाे। ये
एक कवि भी थे, इनकी ये पंक्तियाँ समय-समय पर हमें प्रेरणा देती हैं:
'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।'
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